बैजंती देवी की कहानी

 बैजंती देवी, पत्नी चंद्रदीप चौधरी, कटोना , खुशरूपुर की निवासी हैं। वे प्लिक कला में निपुण हैं और अपने इस हुनर के माध्यम से न केवल अपने परिवार को सहारा दे रही हैं, बल्कि समाज में भी एक मिसाल कायम कर रही हैं।

2002 में बैजंती देवी ने अंबपाली पटना संगठन से जुड़कर अपने सफर की शुरुआत की। उस समय उनकी मासिक आय मात्र 1200 रुपये थी। अनुसूचित जाति के परिवार से होने के कारण, उन्हें समाज में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लेकिन अंबपाली संगठन ने उन्हें हमेशा प्रोत्साहन और आर्थिक मदद दी, जिससे उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली।

उनके परिवार में अविवाहित ननद, विकलांग बेटा और दो बेटियां हैं। पति की आमदनी परिवार के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं थी। इस कठिन परिस्थिति में, बैजंती देवी ने प्लिक कला को सीखा और अपनी मेहनत और लगन से अपने उत्पादों की गुणवत्ता को लगातार बेहतर बनाती रहीं। उनकी कला ने जल्दी ही पहचान हासिल की और उनकी आमदनी में भी बढ़ोतरी हुई।

संगठन के सहयोग से बैजंती देवी को मास्टर ट्रेनर बनने का अवसर मिला। उन्होंने 250 कलाकारों को स्किल अपग्रेडेशन ट्रेनिंग दी और वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार के सौजन्य से डिजाइन कार्यशाला में NIFT के डिजाइनरों के साथ काम करने का भी मौका मिला। उन्होंने नेशनल अवार्ड के लिए भी प्रयास किया और दिल्ली तक के अंतिम राउंड में पहुंचीं, हालांकि वे पुरस्कार नहीं जीत सकीं।

बैजंती देवी ने कभी हार नहीं मानी। अंबपाली प्रोड्यूसर कंपनी में कलाकारों के साथ काम करते हुए अब उनकी आमदनी 12000 से 15000 रुपये प्रति माह हो गई है। फील्ड कोऑर्डिनेटर के रूप में काम करते हुए, उन्होंने घर-घर जाकर महिलाओं को जागरूक किया और अंबपाली संगठन से लगभग 1700 से 1800 कलाकारों को जोड़ा। इस लंबी यात्रा में, उन्होंने अपने गांव कटोना से निकलकर अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए यह मुकाम हासिल किया है।

बैजंती देवी की कहानी कड़ी मेहनत, समर्पण और संगठन के सहयोग की मिसाल है। उन्होंने अपने हुनर और मेहनत से न केवल अपने परिवार का जीवन स्तर बेहतर किया है, बल्कि अनेक अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी है।